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सुपौलवासियों का राम जन्मभूमि स्थल अयोध्या और राम मंदिर से है गहरा तथा अटूट नाता : उज्ज्वल सिंह

सुपौल।  भाजपा सुपौल के आईटी & मीडिया प्रकोष्ठ के जिला ट्विटर प्रभारी श्री उज्ज्वल कुमार सिंह को सुपौल जिला के निवासी होने पे गर्व है। वो अपने आप को राम जन्मभूमि से पुराना नाता होने का भी वादा करते हैं।

उन्होंने कहा कि पूरे सुपौलवसियों को आज कामेश्वर चौपाल पे गर्व है। कामेश्वर जी का राम जन्मभूमि से लगाव उनके धार्मिक भावनाओं को भी इंगित करती है। उज्ज्वल ने निम्नलिखित बिंदुओं को याद करते हुए उनके वेक्तित्व के बारे में बताया। :- 

       • 9 नम्बर 1989 को कामेश्वर चौपाल ने रखी थी राम मंदिर की पहली ईंट।

      • कामेश्वर चौपाल बिहार भाजपा के बड़े नेता हैं।

      • 1986 में निकाली गई राम जानकी यात्रा के प्रभारी थे कामेश्वर।

      • कामेश्वर चौपाल ने हीं नारा दिया था -"रोटी के साथ राम" ।

      • वर्तमान में कामेश्वर श्रीराम जन्म भूमि ट्रस्ट का हिस्सा हैं।


कौन हैं कामेश्वर चौपाल

कामेश्वर चौपाल बिहार के सुपौल जिले के रहने वाले हैं जो मिथिला इलाके में पड़ता है. हिंदू धर्म में मिथिला इलाके को सीता का घर भी कहा जाता है. ओपेन मैगजीन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कामेश्वर चौपाल ने बताया था- ''हम लोग जब बड़े हो रहे थे तो राम को अपना रिश्तेदार मानते थे. उनके मुताबिक मिथिला इलाके में शादी के दौरान वर-वधु को राम-सीता के प्रतीकात्मतक रूप में देखने की प्रथा है.''

कामेश्वर का गांव कोशी नदी के किनारे पड़ता है. कामेश्वर ने अपनी पढ़ाई लिखाई मधुबनी जिले में की. यहीं पर कामेश्वर संघ के संपर्क में आए. उनके एक अध्यापक संघ के कार्यकर्ता हुआ करते थे. यहीं से कामेश्वर ने हाईस्कूल तक की शिक्षा हासिल की. संघ से जुड़े उस अध्यापक की ही मदद से कामेश्वर को कॉलेज में दाखिला मिला.

कामेश्वर चौपाल ने उस लेख में बताया था कि संघ लोगों के बीच बेहद शांतिपूर्ण ढंग से नेटवर्क बनाकर अपना काम करता है. उस अध्यापक ने कामेश्वर को एक लेटर दिया था जिसे ले जाकर उन्होंने कॉलेज के एक टीचर को दिया. और फिर कामेश्वर का एडमिशन कॉलेज में आसानी से हो गया.

ग्रेजुएशन पूरा करने के दौरान ही कामेश्वर संघ के प्रति पूरी तरह समर्पित हो चुके थे. इसके बाद उन्हें मुधबनी जिले का जिला प्रचारक बना दिया गया. इसी समय कामेश्वर ने तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम की उस घटना के बारे में सुना जब 800 दलितों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था. कामेश्वर ने बताया था कि यही वो घटना है जिससे उनके भीतर राम मंदिर को लेकर इच्छा बलवती हो गई थी.

इस सामूहिक धर्म परिवर्तन को देखते हुए संघ ने संस्कृति रक्षा निधि योजना बनाई. 1984 में विश्व हिदू परिषद ने दिल्ली के विज्ञान भवन में धर्म संसद का आयोजन किया. इस धर्म संसद में बड़ी संख्या में संत और कार्यकर्ता जुटे. इस धर्म संसद में अशोक सिंहल ने एक भाषण दिया जिसमें हिंदू धर्म के खतरे में होने की बात कही गई. इस कार्यक्रम में कश्मीर के आखिरी महाराज हरिसिंह के पुत्र कर्ण सिंह ने भी भाषण दिया. उन्होंने कहा कि ये हिंदुओं के लिए शर्म की बात है कि राम की जन्मभूमि पर एक दीपक तक नहीं जला सकते हैं. इसी बैठक में अयोध्या, काशी और मथुरा में धार्मिक भूमियों पर हिंदुओं के हक की बात की गई. ये भी तय किया गया कि राम मंदिर के यात्रा भी निकाली जाएगी.

इसी के तहत पहली यात्रा सीतामढ़ी में निकाली गई जिसे सीता का जन्मस्थान भी माना जाता है. इस यात्रा में जुटी भीड़ देखकर कामेश्वर चौपाल भौचक थे. उन्हें इतने जबरदस्त समर्थन की उम्मीद नहीं थी. जब इस तरह की यात्राएं तेज हुईं तो 1986 में राजीव गांधी सरकार ने अयोध्या में विवादित ढांचे के ताले खुलवा दिए.

बड़ा संदेश देना था मकसद

अगले दो सालों में संघ ने इसे लेकर बड़े स्तर पर तैयारियां कीं. नवंबर 1989 में शिलान्यास का कार्यक्रम रखा गया. कामेश्वर चौपाल भी तब अयोध्या में ही मौजूद थे. वो एक टेंट में रह रहे थे. उनके कमरे में अशोक सिंहल के एक बेहद नजदीकी व्यक्ति आए और उन्होंने बताया कि आपको शिलान्यास के लिए चुना गया. यानी भगवान राम के मंदिर निर्माण की पहली ईंट आप रखेंगे. जब कामेश्वर शिलान्यास की जगह पर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि सभी बड़े नेता मौजूद थे. फिर भी भाजपा अपने #सेवा_हीं_संगठन और सबका बराबर अधिकार वाली अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए पहली ईंट कामेश्वर चौपाल जी से हीं दिलाई।

राजनीतिक शुरुआत

पार्टी के आदेश पर कामेश्वर ने 1991 में राम विलास पासवान के खिलाफ चुनाव लड़ा था. लेकिन वो चुनाव हार गए. साल 2002 में वो बिहार विधान परिषद के सदस्य बने. 2014 में भी वो पार्टी के टिकट पर संसदीय चुनाव में रंजीता रंजन के खिलाफ चुनावी मैदान में खड़े हुए थे. लेकिन उन्हें वैसी कामयाबी नहीं हासिल हुई. भाजपा में इनका बड़ा सम्मान है।


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