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भारतीय राफ़ेल जेट्स में 'हैमर' फिट करने से क्या बदलेगा?

बोलता है बिहार। 29 जुलाई को अम्बाला (हरियाणा) पहुँच रहे राफ़ेल लड़ाकू विमानों को लेकर ख़बर है कि भारत फ़्रांस से घातक हैमर मिसाइल ख़रीद का सौदा कर रहा है. ये सौदा भारतीय सेना 'इमरजेंसी पावर्स' यानी आकस्मिक समय में इस्तेमाल के लिए मिले अधिकारों के तहत कर रही है.

इससे अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि भारत 60 से 70 किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली इन हैमर मिसाइलों की ख़रीद चीन से जारी तनाव के मद्देनज़र कर रहा है.

समाचार एजेंसी एएनआई ने सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा है कि शॉर्ट नोटिस के बावजूद फ़्रांस हमारे राफ़ेल लड़ाकू विमानों के लिए इन्हें सप्लाई करने को तैयार हो गया है.

राफ़ेल के पाँच लड़ाकू विमानों की पहली खेप चार दिनों बाद हरियाणा स्थित वायु सेना के अम्बाला हवाई अड्डे पर लैंड करेगी.

हैमर मिसाइल तैयार करने वाली कंपनी साफ़्रान इलेक्ट्रॉनिक एंड डिफ़ेंस के मुताबिक़ 'हैमर मिसाइल दूर से ही आसानी से इस्तेमाल की जा सकती है.' हवा-से-धरती पर मार कर सकने वाली इस मिसाइल का निशाना बहुत सटीक बताया जाता है.

कंपनी का दावा है कि 'ये सिस्टम बहुत आसानी से तालमेल बैठा सकता है, ये गाइडेंस किट के सहारे निशाने हिट करता है और कभी जाम नहीं होता. मिसाइल के आगे लगे गाइडेंस किट में जीपीएस, इंफ्रारेड और लेसर जैसी चीज़े फिट होती हैं.

हैमर का असली नाम 'आर्मेमेंट एयर सोल मोदूलार' है जिसे फ़्रांस के बाज़ारों में बिक्री के लिए बाद हैमर बुलाया जाने लगा और फिर इसका यही नाम प्रचिलित हो गया.

हैमर यानी हाइली एजाइल मोडूलर एम्यूनिशंस एक्सटेंडेड रेंज.

जो लड़ाकू राफ़ेल विमान भारत ने फ़्रांस से लिये हैं, उनमें पहले से ही हवा से हवा में मार करने वाले 'मेटियोर' यानी लंबी दूरी वाली मिसाइलें लगी होती हैं, जो भारतीय वायुसेना की क्षमता को पड़ोसी मुल्कों की तुलना में कई गुना बढ़ा देंगे.

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को भारत के पक्ष में मोड़ने में भारतीय वायु सेना ने बहुत अहम रोल अदा किया था.

पिछले 50 सालों में भारतीय वायुसेना की ताक़त में बहुत इज़ाफ़ा हुआ है.

ढाई सौ किलो वज़न से शुरू होने वाली हैमर मिसाइल राफ़ेल के अलावा मिराज लड़ाकू विमानों में भी फ़िट हो सकती है.

हालांकि फ़्रांस के अलावा इस हैमर मिसाइल का इस्तेमाल एशियाई देशों जैसे मिस्र, क़तर वग़ैरह अधिक करते हैं.

एएनआई ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि हैमर मिसाइलें किसी भी क्षेत्र जैसे पहाड़ी इलाक़ों तक तैयार बंकर्स को भेद सकती हैं.

इस सिलसिले में भारत के उत्तरी सीमा पर बसे लद्दाख़ का ख़ासतौर पर ज़िक्र किया गया है.

लद्दाख को लेकर इन दिनों भारत-चीन के बीच विवाद जारी है.

हालांकि भारत ने पॉलिसी फ्रंट पर कई फ़ैसले लिये हैं जो चीन की तरफ़ इशारा करते हैं. युद्ध या किसी हमले को लेकर किसी तरह के कोई संकेत भारत की तरफ़ से नहीं आये हैं, ना ही चीन की ओर से.

लेकिन दोनों मुल्क़ दो जंग पहले लड़ चुके हैं. भारतीय स्वतंत्रता के कुछ सालों बाद 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा था.

कारगिल भी लद्दाख़ में ही है जहाँ भारत-पाकिस्तान के बीच प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय जंग हुई थी.

भारत ने फ़्रांस से 36 लड़ाकू विमानों का सौदा साठ हज़ार करोड़ रूपयों में किया है. हालांकि विमानों की सही क़ीमत को लेकर बहुत सारे विवाद रहे हैं.

और राफ़ेल लड़ाकू विमान सौदे का मामला भारतीय सुप्रीम कोर्ट तक जा चुका है. मगर वहाँ भी सुरक्षा कारणों से सौदे को लेकर सारी बातें सामने नहीं आ पाईं.

कांग्रेस पार्टी के सीनियर नेता मनीष तिवारी ने सवाल किया है कि 'हैमर का सौदा राफ़ेल डील समझौते के वक़्त ही क्यों नहीं किया गया?'

एक ट्वीट में कांग्रेस नेता ने पूछा है कि 'इस मामले में और सस्ती क़ीमत पर मिलने वाले स्पाइस और पेवव्हेव हथियार के बारे में क्यों नहीं सोचा गया, ये भारतीय वायु सेना के पास पहले से ही हैं.'

'क्या हैमर की क़ीमत इनसे अधिक है?' मनीष तिवारी ने यह सवाल पूछा है.

साल 2007 से फ़्रांस की सेना में मौजूद हैमर मिसाइल का इस्तेमाल अफ़ग़ानिस्तान और लीबिया में हो चुका है.

इसे बनाने वाली कंपनी का दावा है कि 'पहले हुए इस्तेमाल बहुत ही कामयाब रहे हैं.'

लेकिन भारत फ़्रांस से कितने हैमर मिसाइल और किस क़ीमत पर ख़रीद रहा है? इसको लेकर कुछ साफ़ नहीं है.

कई भाषाओं में छपने वाली पत्रिका 'द इंडिया टुडे' ने क़रीब सौ मिसाइलों के सौदे की बात कही है.

बीजेपी के महासचिव भूपेंद्र यादव ने कहा है कि 'जो लोग भारत पर उसकी सीमा की सुरक्षा को लेकर सवाल कर रहे हैं, उनके लिए जानकारी - भारत राफ़ेल को हैमर मिसाइलों से लैस कर रहा है. दुश्मन के बंकर भी अब बच नहीं पाएंगे.'

बीजेपी सरकार राफ़ेल की क़ीमत पर सवाल को भी 'राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बनाने' में क़ामयाब रही थी.

हालांकि जब 1980 के दशक में बोफ़ोर्स तोपें ख़रीदी गई थीं, तब जिन लोगों ने उस डील पर जमकर हो-हल्ला किया था, उनमें भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे थी.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक़, अमरीका और चीन के बाद भारत रक्षा पर ख़र्च करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है और दक्षिण एशिया में तो उसका स्थान सबसे ऊपर है.

पिछले साल के मुक़ाबले भारत के रक्षा बजट में 6.8 फ़ीसद बढ़ोतरी हुई है जो साल 2019 में 71.1 अरब डॉलर था.

मगर भारत का शायद ही कोई रक्षा सौदा किसी विवाद से कभी परे रहा है. चाहे वो जवाहर लाल नेहरू के वक़्त का जीप सौदा हो, या बोफ़ोर्स और अबका राफ़ेल.


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