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लोगों को शर्म आनी चाहिए खुद की कमजोरी को बेरोजगारी का नाम देते हुए: उज्ज्वल सिंह

सुपौल,24 सितम्बर । बढ़ते बेरोजगारी और इसको बड़ा मुद्दा बनाकर सरकारों को कोषणा लोगो की आदत सी हो गई है। आजकल जिससे भी पूछिए, वो अपने कमजोरी को छुपाते हुए बेरोजगार होने का दलील देगा। 
इसी मुद्दे पे भाजपा सुपौल के जिला ट्विटर प्रभारी और अनुग्रह नारायण महाविद्यालय,पटना इकाई के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र कार्यकर्ता व वक्ता श्री उज्ज्वल कुमार सिंह अपना पक्ष रखते हुए बेरोजगारी की हर एक शब्दों को घेरते हुए सामने आए हैं। 
उन्होंने बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा नहीं बनाकर इसका उपाय धूंडने के लिए लोगो से अपील किया।

                      उन्होंने लोगो से मिलकर बढ़ती बेरोज़गारी के कारणों पर एक नज़र डालने को भी कहे: 

किसी बेरोज़गार से सवाल करो...
1. मजदूरी करोगे....?
- नहीं
2. दुकान पर काम करोगे..?
- नहीं
3. बाइक / कार का काम जानते हो..?
- नहीं
4. बिजली मैकेनिक बनोगे...?
- नहीं
5. पेंटिंग का काम आता है..?
- नहीं
6. मिठाई बनाना जानते हो...?
- नहीं
7. प्राइवेट कंपनी में काम करोगे?
- नहीं...
8. मूर्तियां, मटके, हस्तशिल्प वगैरह कुछ बनाना आता है?
   - नहीं.
9. तुम्हारे पिता की ज़मीन है?
     - हाँ.
10. तो खेती करोगे ?
     - नहीं!!!! 

ऐसे 10 - 20 प्रश्न और पूछ लो जैसे - सब्ज़ी बेचोगे ? फ़ेरी लगाओगे? प्लम्बर, बढ़ई / तरखान, माली / बागवान, नाई आदि का काम सीखोगे ??
      - सब का जवाब ना में ही मिलेगा।।

फिर पूछो...
11. भैया किसी कला मे निपुण तो होगे...?
    - नहीं।। पर मैं B. A. पास हूँ , M.A. पास हूँ, डिग्री है मेरे पास।।

12. बहुत अच्छी बात है पर कुछ काम जानते हो ? कुछ तो काम आता होगा सैकड़ों की संख्या में काम है ?
    - नहीं,काम तो कुछ नहीं आता।

उन्होंने ये बताने को कहा कि अब ऐसे युवा बेरोज़गार सिर्फ हमारे ही देश में क्यूँ है?

क्योंकि हमारा युवा दिखावे की जिंदगी जीने का आदी हो गया है। यहां सबको कुर्सी वाली नौकरी चाहिए जिसमें कोई काम भी ना करना पड़े। ऐसा युवा सच में देश के लिए अभिशाप ही है। जहां अपनी आजीविका के लिए भी काम करने से हिचकिचाता है।
वो कहे शर्म आनी चाहिए खुद की कमजोरी को बेरोजगारी का नाम देते हुए।

हर साल लाखों बच्चे डिग्री लेके निकलते है पर सच कहूँ तो सब के हाथ में काग़ज़ का टुकड़ा होता है हुनर नहीं। जब तक आप खुद में कुछ हुनर पैदा करके उसको आजीविका अर्जन में प्रयोग मे नहीं लाते तब तक ख़ुद को बेरोजगार कहने का हक़ नहीं है किसी का भी।
रही बात सरकारों की ये तो आती रहेंगी जाती रहेंगी कोई भी सरकार 100% सरकारी रोज़गार नहीं दे सकती।

तो मेरे प्यारे देशवासियों, समय रहते भ्रामक दुनिया से निकलने का प्रयत्न करो और अपनी काबिलीयत के अनुसार काम करना शुरू करो।अन्यथा जीवन बहुत मुश्किल भरा हो जाएगा।
जापान जैसे देशों में छोटा सा बच्चा अपने खर्च के लिए कमाने लग जाता
 है। और हम यहां 25-26 साल का युवा वर्ग केवल सरकारों की आलोचना करके समय की बर्बादी कर रहा है।

आत्मनिर्भरता के मूल मंत्र का विरोध केवल इस लिये मत करो क्योंकि इस का ज़िक्र उस व्यक्ति ने किया है जिसे आप किसी कारणवश पसंद नहीं करते हो। 
पसंद तो कोई कड़वी दवाई या पीड़ादायक इंजेक्शन को भी नहीं करता परन्तु स्वास्थ्य लाभ के लिए उन्हें लेना ही पड़ता है। 

आत्मनिर्भरता के लाभों पर नज़र डालो, उन्हें पहचानो, समझो और अपनाओ। सरकारी नौकरी के भ्रमजाल से निकल कर नौकरियां मांगने के बजाय नौकरियां पैदा करने की ओर ध्यान दो। रोज़गार मांगने के बजाय ऐसे उपाय करो कि अपने जैसे लाखों को रोज़गार दे पाओ।...




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